उट्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो...पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...
आबजू
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू, या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
सितारे फ़लक
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा, जहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़
ख़ता
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली, ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
ख़मोशी
चमन-ज़ार-ए-मोहब्ब्बत में ख़मोशी मौत है बुलबुल, यहाँ की ज़िंदगी पाबंदी-ए-रस्म-ए-फ़ुग़ाँ तक है
सफ़ीने
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने, फ़क़ीह ओ सूफ़ी ओ शाइर की ना-ख़ुश-अंदेशी
बा-ख़बर
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं, कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील
तलाश
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है, शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं
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