रौ में आए तो वो ख़ुद गर्मी-ए-बाज़ार हुए...पढ़ें जफ़र इकबाल के शेर...
लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट,
सुनोगे लफ़्ज़ में भी फड़फड़ाहट, लहू में भी पर-अफ़्शानी रहेगी
पतंग उड़ाने से
पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद, कि उस की अपनी अबा में पतंग उड़ती है
बात बात से निकला
ये क्या फ़ुसूँ है कि सुब्ह-ए-गुरेज़ का पहलू, शब-ए-विसाल तिरी बात बात से निकला
चाँद हाइल
हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे, गुज़रते बादलों में चाँद हाइल होने वाला है
निशानात का ज़ाएर
वो मक़ामात-ए-मुक़द्दस वो तिरे गुम्बद ओ क़ौस, और मिरा ऐसे निशानात का ज़ाएर होना
आसमाँ पर कोई तस्वीर
आसमाँ पर कोई तस्वीर बनाता हूँ ज़फ़र, कि रहे एक तरफ़ और लगे चारों तरफ़
नक़्शा बना हुआ है
ऐसा है जैसे आँख की पुतली के वस्त में, नक़्शा बना हुआ है किसी ख़्वाब-ज़ार का
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