ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए...पढ़ें ज़फ़र इक़बाल के शेर..
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर ज़फ़र, आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए
थकना भी लाज़मी था
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते, कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते
हम को तू न मिला
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला, किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
दबे पाँव गुज़र जाएगी
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी, ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
रोया हुआ मैं
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो ज़फ़र, साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं
बस दीदार होना चाहिए
अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात, जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए
रखना तो दबा भी देना
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना, पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
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