Urdu Shayari: ज़ुल्फ़ें मुँह पर हैं मुँह है ज़ुल्फ़ों में,रात भर सुब्ह शाम दिन भर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में,वहीं खटकने लगा बाल बाल आँखों में
जोशिश अज़ीमाबादी
उस के रुख़्सार पर कहाँ है ज़ुल्फ़,शोला-ए-हुस्न का धुआँ है ज़ुल्फ़
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महेश चंद्र नक़्श
उन के गेसू सँवरते जाते हैं,हादसे हैं गुज़रते जाते हैं
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शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
हातिम उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख,जान कर क्यूँ बला में फँसता है
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जुरअत क़लंदर बख़्श
उस ज़ुल्फ़ पे फबती शब-ए-दीजूर की सूझी,अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी
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आरज़ू लखनवी
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह,ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
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मीर तक़ी मीर
हम हुए तुम हुए कि मीर हुए,उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
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