अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे.. पढ़ें वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
, तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बअद का है
, पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़
, सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
, हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं
, अपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
, एक क़तरे को समुंदर नज़र आएँ कैसे
वसीम वरेलवी की ग़ज़ल
जिस ने दानिस्ता किया हो नज़र-अंदाज़ वसीम
, उस को कुछ याद दिलाएँ तो दिलाएँ कैसे
View More Web Stories