जिस का इंकार हथेली पे लिए फिरता हूँ...पढ़ें जफ़र इकबाल के शेर...
यक़ीं आ जाएगा
वो बहुत चालाक है लेकिन अगर हिम्मत करें, पहला पहला झूट है उस को यक़ीं आ जाएगा
नक़्श की अदा देखूँ
वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरत, हर एक लफ़्ज़ हर इक नक़्श की अदा देखूँ
रस्ते से हटा देने का
अपने ही सामने दीवार बना बैठा हूँ, है ये अंजाम उसे रस्ते से हटा देने का
मुख़्तसर नहीं कर रहा
अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं आ रही, मैं जभी तो बात को मुख़्तसर नहीं कर रहा
गुल-दान कर देगा मुझे
रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख़ होंट, एक दो पल के लिए गुल-दान कर देगा मुझे
सोने के बावजूद
करता हूँ नींद में ही सफ़र सारे शहर का, फ़ारिग़ तो बैठता नहीं सोने के बावजूद
मो'तबर ज़्यादा नहीं
सुना है वो मिरे बारे में सोचता है बहुत, ख़बर तो है ही मगर मोतबर ज़्यादा नहीं
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