मिर्जा ग़ालिब के वह शेर जिसे पढ़ हो जाएंगे मदहोश..
क़ाइल
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
बख़्श
न सुनो गर बुरा कहे कोई, न कहो गर बुरा करे कोई,रोक लो गर ग़लत चले कोई, बख़्श दो गर ख़ता करे कोई
क़रासिद
क़रासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ, मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
जिगर
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को, ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
ज़माने
हर रज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार, तुम मुसकरा दिए मेरे ज़माने बन गए।
ज़ुल्फ़
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
चाहूँगा
ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं, मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
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