Urdu Shyari: तेरे आने की क्या उमीद मगर, कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
अल्लामा इक़बाल
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
मिर्ज़ा ग़ालिब
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता, अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
फ़रहत एहसास
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के, अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी, सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
मुनीर नियाज़ी
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ, तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उमीद, मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
फ़िराक़ गोरखपुरी
तेरे आने की क्या उमीद मगर, कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
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