करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला..पढ़ें मिर्ज़ा गालिब के शेर..
आईना
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
ख़बर
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी, कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
आरज़ू
मरते हैं आरज़ू में मरने की, मौत आती है पर नहीं आती
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ, मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
बदनाम
होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को न जाने, शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है
ख़लिश
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को, ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मय-ख़ाने
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़, पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
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