हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे..पढ़ें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर..


2024/01/02 22:49:50 IST

राह में जचा

    मक़ाम फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं, जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

रक़म

    हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

मसरूफ़-ए-इंतिज़ार

    जानता है कि वो न आएँगे, फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल

बेगाना

    दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

आरज़ू

    ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम, विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं

दिल

    उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर, कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं

परवरदिगार के

    इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन, देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के

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