ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का...पढ़ें ज़फ़र इक़बाल के शेर..
आज की उदासी का
ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा, कोई इलाज नहीं आज की उदासी का
टकटकी बाँध के
टकटकी बाँध के मैं देख रहा हूँ जिस को, ये भी हो सकता है वो सामने बैठा ही न हो
सज़ा सख़्त है
यूँ मोहब्बत से न दे मेरी मोहब्बत का जवाब, ये सज़ा सख़्त है थोड़ी सी रिआयत कर दे
पुराने काग़ज़ों का क्या करें
घर नया बर्तन नए कपड़े नए, इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
रात भर पैग़ाम था
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं, रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
मोहब्बत में नहीं रह सकता
जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता, मैं हमेशा तो मोहब्बत में नहीं रह सकता
बदन का सारा लहू
बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर, वो एक बोसा हमें दे के सुर्ख़-रू है बहुत
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