जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी..पढ़ें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर..
बहार
रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई, जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
कामयाब
फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल, हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
गुम-शुदा
मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है, मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़
हिदायत
हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी, जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे
मोआमला
दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम, कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई
इख़्तियार
अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें, रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
जुदाइयाँ
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी, बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या
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