तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें..पढ़ें परवीन शाकिर के शेर..
तासीर मसीहाई
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा, रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
कल रात
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है, चिड़ियों को बहुत प्यार था उस बूढे शजर से
दरवाज़ा
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न, बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ
मेरी तलब
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर, हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी
चाँदनी
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में, मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी
शनासाई
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की, उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
निसाबों
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े, तेरा मेयार बदलता है निसाबों की तरह
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