मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से..पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...
हरजाई
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है, बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
तमन्ना
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है, ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
अंदाज़-ए-बयाँ
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है, शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
नशेमन
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की, नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
रूबाही
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी, अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
इमाम
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर, ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र
ज़ाहिदों
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को, कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
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