रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी..पढ़ें साहिर लुधयानवी के चुनिंदा शेर...
गुनहगार
मुजरिम हूँ मैं अगर तो गुनहगार तुम भी हो, ऐ रहबरना-ए-क़ौम ख़ता-कार तुम भी हो
पशेमानी
वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है, बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो
अलक़ाब
जम्हूरियत-नवाज़ बशर-दोस्त अम्न-ख़्वाह, ख़ुद को जो ख़ुद दिए थे वो अलक़ाब क्या हुए
मोहब्बत
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अतों से न गिर, बुलंद बाम-ए-हरम ही नहीं कुछ और भी है
पुकारने
ऐ आरज़ू के धुँदले ख़राबो जवाब दो, फिर किस की याद आई थी मुझ को पुकारने
बरतरी
बरतरी के सुबूत की ख़ातिर, ख़ूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है
सूरत-ए-बयाँ
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले, अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले
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