इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना...पढ़ें 'दर्द' पर बेहतरीन शेर


2024/01/28 16:28:26 IST

ज़िंदगानी

    सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ...ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ

दरिया

    इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना...दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

दर्द ऐ दिल

    कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी...सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

ज़िंदगी

    ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में...हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं

तबीअत

    इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया...दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया

संग-ओ-ख़िश्त

    दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ...रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ

ज़ख़्म दर्द

    जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए...तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

गुज़र

    बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता...जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

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